Hello दोस्तों आज इस आर्टिकल में आप जानेंगे कि आप काबिल है या नहीं , या काबिल नाकाबिल बस एक शब्द है जो हम एक दूसरे पर ठप्पा लगाते हैं की तुम काबिल हो और तुम नाकाबिल, तो यह जानने के लिए पूरा पढ़ें और समझें , हम आशा करते हैं कि आपको यह पढ़कर अच्छा लगेगा और अगर अच्छा लगे तो और लोगों को share करें।
किसी चीज़ का कोई अर्थ नहीं होता है, सिवाय उस अर्थ के जो हम उसे देते हैं। मैं आपके बारे में तो नहीं जानता, लेकिन मैंने ऐसे नाकाबिल किसी व्यक्ति के बारे में नहीं सुना, जो पैदा होते ही “ठप्पे” की लाइन में खड़ा हो गया हो। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि हर व्यक्ति के पैदा होने के बाद ईश्वर उसके माथे पर ठप्पा लगा रहा हो ? “क़ाबिल …. क़ाबिल क़ाबिल . नाक़ाबिल। ओह… निश्चित रूप से नाक़ाबिल।” माफ कीजिए, मुझे नहीं लगता कि ऐसा होता है। कोई भी आप पर “क़ाबिल” या “नाक़ाबिल” का ठप्पा नहीं लगाता है। यह काम आप ख़ुद करते हैं। यह तस्वीर आप खुद बनाते हैं। इसका फ़ैसला आप खुद करते हैं। आप, और सिर्फ़ आप, ही यह तय करते हैं कि क्या आप क़ाबिल बनने वाले हैं। यह सीधे-सीधे आपका दृष्टिकोण होता है। अगर आप कहते हैं कि आप क़ाबिल हैं, तो आप हैं। अगर आप कहते हैं कि आप क़ाबिल नहीं हैं, तो आप नहीं हैं। दोनों ही तरह से आप अपनी लिखी कहानी के अनुसार जीवन जिएँगे। यह इतना महत्वपूर्ण है कि मैं इसे दोबारा कहना चाहता हूँ आप अपनी लिखी कहानी के अनुसार जीवन जिएँगे। यह इतना ही आसान है।
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तो फिर लोग अपना इतना बुरा क्यों करते हैं? वे अपनी कहानी में यह क्यों लिखते हैं कि वे क़ाबिल नहीं हैं ? यह तो इंसान के मस्तिष्क की प्रकृति है, हमारा सुरक्षात्मक हिस्सा, जो हमेशा ग़लत चीज़ों की तलाश करता रहता है। क्या आपने कभी गौर किया है कि गिलहरी इन चीज़ों की चिंता नहीं करती है? क्या आप किसी गिलहरी के मुँह से यह सुनने की कल्पना कर सकते हैं,
“मैं इस साल जाड़ों के लिए ज़्यादा गिरी इकट्ठी नहीं करूंगी, क्योंकि मैं क़ाबिल नहीं हूँ ?” संभव ही नहीं है, क्योंकि कम बुद्धि वाले ये प्राणी खुद के साथ ऐसा कभी नहीं करेंगे। सिर्फ़ इस दुनिया के सबसे विकसित प्राणी यानी इंसान में ही खुद को इस तरह सीमित करने की क्षमता होती है।
आप कहते हैं, “ओह, लेकिन मैं यह नहीं कर सकता। मैं यह फ़ैसला कैसे कर सकता हूँ कि मैं क़ाबिल हूँ। यह फ़ैसला तो किसी और को करना चाहिए।” माफ़ कीजिए, मैं कहता हूँ, यह ठीक नहीं है। यानी मेरा मतलब है यह बकवास हैं! इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि कोई दूसरा व्यक्ति आपके बारे में इस वक़्त क्या कहता है या उसने अतीत में क्या कहा था, क्योंकि आपके यकिन किए बिना उसकी बातों का कोई प्रभाव नहीं पड़ सकता। इसलिए यह काम किसी और को नहीं, आपको ही करना होगा।
“अगर सौ फुट ऊँचे ओक के पेड़ में इंसान का दिमाग़ होता, तो वह सिर्फ दस फ़ुट ही ऊँचा होता!”
– टी. हार्व एकर
अगर आप कहते हैं कि आप क़ाबिल हैं, तो आप हैं। अगर आप कहते हैं कि आप क़ाबिल नहीं हैं, तो आप नहीं हैं। दोनों ही तरह से आप अपनी लिखी कहानी के अनुसार जीवन जिएँगे।
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