प्रेम भावना ( Love Feeling )

प्रेम परमात्मा प्रदत्त अमूल्य विभूति है। इसकी तुलना संसार की कोई भी संपदा नहीं कर सकती है। प्रेम से सभी को वश में किया जा सकता है। संसार पर विजय प्राप्त करने के लिए सभी अस्त्र-शस्त्र प्रेम के समक्ष निष्फल हैं। प्रेम अमृत रसधार है। प्रेम भौतिक और आध्यात्मिक हो सकता है। शुचिता, पवित्रता, विश्वास, समर्पण की जहां भावना होती है, उसी हृदय के भीतर प्रेम की उपज होती है। प्रेम एक मानव को दूसरे मानव से जोड़ता है। जहां प्रेम होता है वहीं सुख-शांति होती है। अपनों से मिलना प्रेम के कारण ही संभव हो पाता है। परमात्मा का दर्शन भी भक्त अपने आत्मिक प्रेम के आधार पर ही कर पाता है। गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है, ‘हरि व्यापक सर्वत्र समाना। प्रेम तें प्रगट होहिं मैं जाना॥’ प्रेम को बरकरार रखने के लिए लोभ, मोह, अहंकार, द्वेष और दुर्भाव का त्याग करना पड़ता है। जिनके हृदय में प्रेम के पौधे उपजते, फलते और फूलते हैं उनका जीवन खुशी, आनंद, सुख और शांति से सराबोर रहता है। वे प्रेम में मगन रहते हैं।

भारतीय संस्कृति में प्रेम का स्थान अद्वितीय है। इस संसार में सब कुछ पाना प्रेम द्वारा ही संभव होता है। प्रेम नहीं तो कुछ भी नहीं, लेकिन प्रेम भौतिक नहीं, आध्यात्मिक होना आवश्यक है। भौतिक प्रेम का संबंध मात्र शरीर से है, परंतु आध्यात्मिक प्रेम का संबंध आत्मा से है। भौतिक प्रेम क्षणभंगुर और अस्थायी सुख देने वाला होता है, लेकिन आत्मिक प्रेम टिकाऊ, सत्य और आनंद प्रदान करने वाला मुक्तिदायक होता है। मानव को मानव से प्रेम करना ईश्वर की असली पूजा है। जिस पूजा में प्रेम नहीं, वह पूजा स्वार्थ भरी और फल रहित होती है। प्रार्थना में प्रेम का भाव नहीं तो वह व्यर्थ समझिए।

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ईश्वर तो भक्त के प्रेम और भाव के भूखे होते हैं और उन्हें उसके प्रेम के कारण उसे दर्शन देते हैं। पारस्परिक प्रेम से ही बड़े कार्य को गति दी जाती है और देश, समाज का विकास, उत्थान और कल्याण संभव हो पाता है।

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