सिन्धु घाटी सभ्यता, नगर योजना , सामाजिक जीवन तथा धार्मिक व्यवस्था
सिन्धु घाटी सभ्यता
सिन्धु घाटी सभ्यता (2350 से 1750 ई.पू.) को हड़प्पा सभ्यता भी कहा जाता है।
हड़प्पा की खोज सर जॉन मार्शल के नेतृत्व में रायबहादुर दयाराम साहनी द्वारा वर्ष 1921 में की गई। यह सभ्यता उत्तर में माण्डा से लेकर दक्षिण में दायमाबाद तथा पूर्व में आलमगीरपुर से लेकर पश्चिम में सुत्कागेंडोर’ तक विकसित आद्य ऐतिहासिक काल से सम्बन्धित काँस्ययुगीन सभ्यता थी।
सिन्धु सभ्यता से जुड़े भारत में स्थित महत्त्वपूर्ण स्थल हैं—अहमदाबाद (गुजरात) के समीप लोथल, राजस्थान में कालीबंगा, हिसार (हरियाणा) जिले में बनावली, चण्डीगढ़ (पंजाब) के समीप रोपड़ ।
लोथल से सबसे बड़ी जहाजों की गोदी (डॉक-यार्ड) का साक्ष्य मिला है। हड़प्पन लिपि भावचित्रात्मक है तथा यह लिपि दायीं से बायीं ओर लिखी जाती थी।
नगर योजना
हड़प्पा सभ्यता की प्रमुख विशिष्टता नगर नियोजन तथा जल निकासी व्यवस्था है। कहा गया। नगरों के उच्च भाग को ‘नगर दुर्ग’ एवं निष्प भाग को ‘निचला-नगर’ कालीबंगा एकमात्र हड़प्पाकालीन स्थल था, जिसका निचला शहर (सामान्य लोगों के रहने हेतु) भी किले से घिरा हुआ था।
मोहनजोदड़ो से प्राप्त वृहत् स्नानागार एक प्रमुख स्मारक है, जिसके मध्य स्थित स्नानकुण्ड 11.88 मी लम्बा, 7.01 मी चौड़ा एवं 2.43 मी गहरा है। इसका प्रयोग आनुष्ठानिक स्नान हेतु किया जाता था।
‘परिवार’ समाज का आधार था, जो सम्भवतः मातृसत्तात्मक था। समाज चार वर्गों में बँटा था — विद्वान्, योद्धा, व्यापारी और शिल्पकार। लोग शाकाहारी एवं मांसाहारी दोनों थे। आमोद-प्रमोद का साधन जुआ खेलना, शिकार, नृत्य-संगीत इत्यादि थे हड़प्पा निवासी ऊनी एवं सूती दोनों प्रकार के वस्त्र पहनते थे।
शवों को जलाने एवं दफनाने की प्रथा प्रचलित थी।
धार्मिक व्यवस्था
सिन्धु सभ्यता के लोग मातृदेवी की पूजा करते थे। वृक्षपूजा का भी प्रचलन था। मन्दिर के अवशेष यहाँ नहीं मिले हैं, फिर भी मातृदेवी की उपासना के साथ-साथ कूबड़वाला सांड लोगों के लिए विशेष पूजनीय था। नाग की भी पूजा होती थी।
आर्थिक जीवन
आर्थिक जीवन के प्रमुख आधार कृषि, पशुपालन, शिल्प और व्यापार थे।
हड़प्पा सभ्यता से नौ फसलों की जानकारी मिलती है-गेहूँ, जौ, कपास, खजूर, तरबूज, मटर, राई, सरसों एवं तिल। विश्व में सर्वप्रथम कपास की खेती यहीं प्रारम्भ हुई, इसी कारण यूनानियों ने इसे सिण्डॉन कहा है।
बैल, भेड़, बकरी आदि पशु पालतू थे। घोड़े का साक्ष्य हडप्पा सभ्यता में नहीं मिले हैं।
लोगों का मुख्य पेशा शिल्प एवं उद्योग था। शिल्प कार्यों में मनके बनाना, शंख की कटाई, धातुकर्म, मुहर निर्माण तथा बाँट बनाना सम्मिलित थे।
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